The Author
फ़ुर्सतनामा के लेखक बिहारी स्वरूप 1979 बैच के प्राविन्शियल सिविल सर्विस (कार्यकारी शाखा) के अधिकारी रहे है। श्री बिहारी स्वरूप 30 नवम्बर 2013 को डायरेक्टर, स्टेट प्लानिंग इंस्टीटयूट, लखनऊ के पद से सेवानिवृत हुये है। श्री बिहारी स्वरूप सी.डी.ओ. रायबरेली तथा उत्तर प्रदेश शासन में डायरेक्टर फिशरीज़, अपर महानिदेशक (कारागार), रजिस्ट्रार फर्म्स एन्ड सोसाइटीज, उ.प्र. एम.डी.पी.सी.एफ., विशेष सचिव ऊर्जा, विशेष सचिव आवास, निदेशक महिला कल्याण एवं डायरेक्टर जनरल युवा कल्याण जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहे है।
श्री बिहारी स्वरूप ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वर्ष 1977 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में मास्टर आफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की है। पी.सी.एस. (कार्यकारी शाखा) में आने के पूर्व श्री बिहारी स्वरूप सी.एम.पी. डिग्री कालेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में लेक्चरर के पद पर भी कार्यरत रहे हैं। श्री बिहारी स्वरूप ने मोती लाल नेहरू रीजनल इन्जीनियरिंग कालेज, इलाहाबाद में Department of Humanities में भी लेक्चरर के पद पर कार्यरत रह चुके है।
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फुर्सतनामा
₹230.00Original price was: ₹230.00.₹210.00Current price is: ₹210.00.
About Book
श्री बिहारी स्वरूप अपनी मित्र मन्डली में अपने SENSE OF HUMOUR के लिये भी जाने जाते रहे हैं। फ़ुर्सतनामा में “दादू टें बोलो””एक थी पुष्पा” तथा “कहानी वत्सला की” को छोड़कर सभी कहानियों में श्री स्वरूप का SENSE OF HUMOUR मुखरित हुआ है।
“किस्सा पम्पापुर रियासत का” शरारत एवं humour से परिपूर्ण कहानी है। अल्हड़ एवं कामुक, किन्तु दिल से नेक चन्द्रकान्ता तथा मासूम एवं गरीब मोहित के किरदार ने कहानी को रोचक बना दिया है। वहीं टें बोलो दादू, टें बोलो मध्यमवर्ग के एक बुजुर्ग की कहानी है, जो लम्बे समय तक गलतफहमियों का शिकार रहा। परगनाधिकारी, जिलाधिकारी बनाम नसबन्दी कार्यक्रम एक प्रशासनिक संस्मरण है, लेकिन यह लेखक की देश की अंधाधुन्ध बढ़ती हुई आबादी को लेकर लेखक की चिन्ता को हास्यपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त करता है।
Some reviews
I have read the manuscript of “Fursatnama” page to page. The book “Fursatnama” is essentially BIPOLAR in mood swings. Every Story in the book has a particular mood. ‘Kissa Pampapur Riyasat ka’ is an absolute fun to read, though ribald. The story undoubtedly has SEX as the centre of the story. But that is not all. As the story unfolds, it scans a young girl’s heart, body and mind. It also depicts the age-old dialectic conflict between the basic nature of men and women on the one hand, and the social taboos and sanctions on the other hand. टें बोलो, दादू टें बोलो depicts the story of a middle class old man. It throws light on the Geriatric Psychology too. Pick of the book, of course, is ‘Ek Thi Pushpa’. If somebody’s heart is in the right place, he will be compelled to relate to Pushpa, who could be anybody’s darling daughter.
Banwari Swarup
IDAS (Retired) Author of O CORONA!
मैंने श्री बिहारी स्वरूप के द्वारा रचित पुस्तक “फ़ुर्सतनामा” शुरू से अन्त तक पढ़ी, जो मुझे अत्यन्त दिलचस्प लगी। ‘किस्सा पम्पापुर रियासत का’ एक बेहद रोचक कहानी है। अल्हड़ चन्द्रकान्ता का गन्धर्व वाटिका का भ्रमण एक ऐसा प्रसंग है, जो रह-रह कर हंसाता है। ‘सर, आया तो मैं भी इसी काम से था’ यूनिवर्सिटी के दिनों की मस्ती की याद दिलाती है। ‘एक थी पुष्पा’ दिल की गहराइयों को छू लेने वाली कहानी है। उम्मीद है कि शायद भविष्य में अपने देश में फूल सी बच्चियों और लड़कियों के बलात्कार को लेकर सामाजिक चेतना और संवेदनशीलता जागेगी। ‘कहानी वत्सला की’ हमारी हिन्दू मान्याताओं को और प्रगाढ़ करेगी।
विजय प्रकाश
मेम्बर, कामर्शियल टैक्स ट्रिब्यूनल (सेवानिवृत्त)